Cryogenic Rockets | how cryogenic engine works | who invented cryogenic engine ?
Cryogenic Rockets
क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन ऐसे इंजन होते हैं जिनमें ईंधन और ऑक्सीडाइज़र के रूप में अत्यधिक ठंडी द्रवित गैसों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें क्रायोजेनिक ईंधन कहा जाता है क्योंकि इन्हें -253 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान पर रखना होता है।
आमतौर पर, क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन में द्रव हाइड्रोजन (LH2) को ईंधन के रूप में और द्रव ऑक्सीजन (LOX) को ऑक्सीडाइज़र के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ये दोनों ईंधन मिलकर रॉकेट को बहुत तेज गति प्रदान करते हैं, जो ठोस ईंधन वाले रॉकेट इंजन से कहीं ज्यादा ताकतवर होता है।
चलिए आज जानते है, “Cryogenic Rockets” के बारे में पूरी तरह से।
How Cryogenic Engine Works ?
क्रायोजेनिक इंजन न्यूटन के गति के तीसरे नियम पर काम करते हैं: “प्रत्येक क्रिया के लिए एक समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।”
आसान शब्दों में समझने के लिए, क्रायोजेनिक इंजन ईंधन को जलाकर बहुत गर्म गैस बनाते हैं, फिर इस गैस को तेज गति से पीछे की ओर छोड़ते हैं। इस तेज गति से निकलने वाली गैस रॉकेट को आगे की ओर धकेलती है, यही रॉकेट के उड़ने का कारण बनता है।
Parts of Cryogenic Rockets
क्रायोजनिक इंजन मुख्य रूप से चार भागों से मिलकर बने होते हैं:
- ईंधन टैंक: इसमें अत्यधिक ठंडे द्रव हाइड्रोजन (LH2) और द्रव ऑक्सीजन (LOX) को रखा जाता है।
- टर्बोपंप: यह पंप ईंधन और ऑक्सीडाइज़र को इंजन के दहन कक्ष (combustion chamber) में बहुत तेजी से पहुंचाता है। टर्बोपंप को चलाने के लिए भी इसी दहन से उत्पन्न गर्म गैसों का इस्तेमाल किया जाता है।
- दहन कक्ष (Combustion Chamber): यहाँ ईंधन और ऑक्सीडाइज़र मिलते हैं और जलते हैं, जिससे बहुत गर्म गैस बनती है।
- नोजल (Nozzle): यह एक न funnel के आकार का हिस्सा होता है जो गर्म गैसों को रॉकेट के पीछे से बहुत तेज गति से बाहर निकालता है. नोजल का आकार जितना संवारा होता है, गैस की गति उतनी ही तेज होती है, और इस वजह से रॉकेट को लगने वाला बल भी उतना ही ज्यादा होता है।
क्रायोजेनिक ईंधन इतने ठंडे होते हैं कि विशेष इंसुलेशन (insulation) की जरूरत होती है ताकि उन्हें इंजन तक पहुंचने तक उनके तापमान को बनाए रखा जा सके।
क्रायोजेनिक इंजन बनाने और चलाने में काफी जटिल तकनीक का इस्तेमाल होता है, लेकिन यह तकनीक ही रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए जरूरी बहुत तेज गति प्रदान करती है।
Cryogenic Rocket Fuel
क्रायोजेनिक रॉकेट ईंधन (Cryogenic Rocket Fuel) का मतलब होता है अत्यधिक ठंडे द्रव रूपी ईंधन जिनका इस्तेमाल अंतरिक्ष यानों को बहुत तेज गति देने के लिए किया जाता है।
ये ईंधन इतने ठंडे होते हैं कि इन्हें -253 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान पर रखना पड़ता है, इसलिए इन्हें क्रायोजेनिक (Cryogenic) कहा जाता है।
आमतौर पर दो मुख्य प्रकार के क्रायोजेनिक ईंधन इस्तेमाल किए जाते हैं:
- द्रव हाइड्रोजन (Liquid Hydrogen – LH2): यह ईंधन का मुख्य घटक होता है. हाइड्रोजन बहुत हल्का होता है और जलने पर बहुत अधिक ऊर्जा छोड़ता है, जिससे रॉकेट को तेज गति मिलती है।
- द्रव ऑक्सीजन (Liquid Oxygen – LOX): यह ईंधन के जलने में सहायक होता है. हाइड्रोजन अपने आप नहीं जलता, दहन के लिए उसे ऑक्सीजन की जरूरत होती है।
क्रायोजेनिक ईंधन के फायदे:
उच्च क्षमता (High Efficiency): ये ईंधन जलने पर बहुत अधिक ऊर्जा पैदा करते हैं, जिससे रॉकेट को ज्यादा पेलोड (payload) ले जाने या दूर अंतरिक्ष की यात्रा करने में मदद मिलती है।
क्रायोजेनिक ईंधन के नुकसान:
- जटिल भंडारण (Difficult Storage): क्रायोजेनिक ईंधन बहुत ठंडे होते हैं और जल्दी वाष्प बन जाते हैं, इसलिए इन्हें विशेष भंडार टैंकों में रखना होता है। साथ ही इन्हें लॉन्च से कुछ समय पहले ही रॉकेट में भरा जाता है।
- जटिल प्रबंधन (Complex Handling): इतने कम तापमान पर ईंधन को बनाए रखना और इंजन के संचालन के लिए विशेष तकनीक की जरूरत होती है।
भारत सहित कई देश अंतरिक्ष कार्यक्रमों में क्रायोजेनिक ईंधन का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह ईंधन भले ही जटिल हो, लेकिन यह रॉकेटों को अंतरिक्ष की गहराईयों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हमें उम्मीद है की आपको ये ब्लॉग में “Cryogenic Rockets” के बारे में जान्ने को बहुत कुछ नया मिला होगा।
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